“सुनने की कला”

               सुनने की कला 
               * २५०० वर्ष पहले भगवान् बुध्ध ने कहा था जिसे सुनने कला आती नहीं है,उस का शरीर बैल की तरह बढ़ता है पर प्रज्ञा नहीं बढ़ती|बाद में सन.१९१२ में फ्रेंच मनो वज्ञानिक आल्फ्रेड विनए ने जाहिर किया की मानव की शारीरिक और मानसिक आयु अलग अलग होती है|हम अपने से बड़े लोगों का आदर करते है,की भाई आयु के साथ अनुभव जन्य ज्ञान की बढौती हुई होंगी|लेकिन अगर उन्होंने सुननेकी कला नहीं शिखी होती तो?
      
                  *एक छोटासा बच्चा जब जन्म लेता है वो बोलनेको शिखता है सुनके|अगर वो बच्चा पैदाइशी बहरा है तो चाहे स्वर तंत्र अच्छा ही क्यों न हो वो बोलना नहीं शिखता|वो सब सुनता है,ब्रेन में माहिती भंडार जमा होता है,फिर कही जाके बोलना शिखता है|वैसे तो हम सब सुमते है,पर सुननेकी कला किसे आती है? ज्यादातर लोगोको अपनी सुनानेमे ही रस होता है,किसी की सुननेमे कोई रस होता नहीं|
                 
                  * स्वामी विवेकानंदजी ३२ या ३३ साल की उम्र में चल बसे|इतनी छोटी सी शारीरिक उम्र में स्वामीजी की मानसिक उम्र कितनी?३००,५०० या १००० साल?और उनका  मेमरी पावर?कहते है उनके जैसी स्मरण शक्ति किसी और के पास नहीं थी|
                  
                     * आदी शंकराचार्य भी छोटी  उम्र में चल बसे थे|८ साल के थे तब सन्यास लिया था|८ साल के बच्चे में कितनी बुध्धि होती है?सारे हिंदुस्तान के पंडित जनों को हराया था|कितने पुस्तक लिखे?अद्वैत वाद की घोसणा की|जो आज के वैज्ञानिक लो ऑफ़ सिंग्युलारीटी कहते है|८ वि शताब्दी में पैदा हुए थे उस ज़माने में कोई ८ साल का बच्चा सन्यास की बाते करे?आजका हिन्दू धर्म सिर्फ ये खा सकते है,ये नहीं खा सकते खाने पिने में ही अटक गया है|द्वैत माने दो और अद्वैत माने सिर्फ एक ही| मै ही ब्रह्म हूँ|अहम ब्रह्मास्मि|सर्व खलु इदं ब्रह्म|यही तो लो ऑफ़ सिंग्युलारीटी है|
        
          *अच्छे वक्ता बनने से पहले अच्छे श्रोता बनना जरुरी है|  
         
           * दुसरे वर्ल्ड वोर के समय पर अमेरिकन सैनिक की सरेराश आयु सिर्फ १३ साल की ही थी|
        
           * हम कितना  सुनते है वो जरुरी नहीं है,हम कितना  ध्यानपूर्वक सुनते है वो जरुरी है|
        
            * अब बैल तरह शरीर ही बढ़ाना है?या फिर बुध्धि भी!!!!      

4 टिप्पणियां (+add yours?)

  1. ashwani kumar
    नवम्बर 04, 2011 @ 00:40:04

    true sir

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  2. Mita Bhojak
    मई 01, 2010 @ 11:16:48

    ‘जिसे सुनने कला आती नहीं है,उस का शरीर बैल की तरह बढ़ता है पर प्रज्ञा नहीं बढ़ती’ यह जानकारी अच्छी लगी. जब हम दूसरोंकी बात ध्यानसे सूनते है और समजते है तब हमारे संबंध ज्यादा गहेरे बनते है. और गहेरी मित्रता बना शकते है. सुनने की कला बहोत असरकारक है. जब हम सामनेवालेकी बांते अच्छी तरह सुनते है तो ही वो अपनी बात ओपन माइन्ड से सुनता है.

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  3. समीर लाल
    मई 01, 2010 @ 06:50:29

    अच्छा ज्ञान!!

    शिख, शिखना आदि को सीख, सीखना कर लें.

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  4. manik
    मई 01, 2010 @ 02:38:59

    bahut achha likhate hai. aap ye yaatraa yu jaaree rakhenge to theek rahegaa.
    अपनी माटी
    माणिकनामा

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